नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को इस बात को स्वीकार किया कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को नीचे लाने की लोगों की मांग जायज है। हालांकि, बकौल वित्त मंत्री केंद्र अकेले टैक्स में कटौती नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इस बाबत और केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर फैसला करना होगा। उल्लेखनीय है कि पेट्रोल की खुदरा कीमत में करीब 60 फीसद हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारों को टैक्स के रूप में जाता है। वहीं, डीजल के दाम में 56 फीसद हिस्सेदारी टैक्स की होती है।
IWPC में पत्रकारों से बातचीत में सीतारमण ने पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों को बोझ बताया और उसे कम करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ग्राहकों के बोझ को समझा जा सकता है लेकिन कीमतों का निर्धारण एक जटिल मुद्दा है। उन्होंने कहा, ''इसके लिए मैं धर्मसंकट शब्द का इस्तेमाल करती हूं।''
उन्होंने कहा, ''इस सवाल पर केंद्र और राज्यों को बात करना चाहिए क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों पर केवल केंद्र टैक्स नहीं लेता है बल्कि राज्य भी इस पर टैक्स लेते हैं।''
वित्त मंत्री ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स से राज्य और केंद्र दोनों को राजस्व प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा एकत्र टैक्स में से 41 फीसद राज्यों को जाता है। उन्होंने कहा कि इसलिए इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों को बात करनी चाहिए।
पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत लाने के सवाल पर सीतारमण ने कहा कि इस विषय पर जीएसटी काउंसिल को फैसला करना है।
वर्तमान में केंद्र सरकार पेट्रोलिय पदार्थों पर निर्धारित दर से एक्साइज ड्यूटी लेती है। वहीं, विभिन्न राज्य इस पर अलग-अलग दर से टैक्स लेते हैं। पेट्रोलियम पदार्थों के जीएसटी के दायरे में आने के बाद कीमतों में एकरूपता आ जाएगी और ऐसे राज्यों में भी पेट्रोल की कीमत नीचे आ जाएगी, जहां इन पर ज्यादा टैक्स लगता है।