आप जानते ही हैं कि आज के दिन पूरे भारत में दशहरे का पर्व मनाया जा रहा हैं, कहा जाता है यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी पर मनाया जाता हैं और प्रभु श्री राम का जन्म कर्क लग्न और कर्क राशि में हुआ. इसी के साथ कहा जाता है इनके जन्म के समय लग्न में ही गुरु और चंद्रमा, तृतीया पराक्रम भाव में राहु, चतुर्थ भाव माता के भाव में शनि, और सप्तम पत्नी भाव में मंगल बैठे हुए हैं नवम भाव में सच्च राशि गति शुक्र के साथ केतु, दशम भाव में उच्च राशि का सूर्य और एकादश भाव में बुध बैठे हुए हैं.
इसी के साथ रावण की जन्मकुंडली सिंह लग्न की हैं, और कहीं ना कहीं रावण की जन्म कुंडली को तुला लग्न में जन्म लेने का वृतांत भी आया हैं मगर सिंह लग्न की कुंडली का प्रभाव रावण के जीवन में सर्वाधिक रहा हैं. इसी के साथ फलित ज्योतिष के विद्वान रावण की जन्म कुंडली को सिंह लग्न का ही मानते हैं और रावण की कुंडली के लग्न में ही सूर्य और बृहस्पति, द्वितीय भाव में उच्च राशि पर बुध, तृतीय पराक्रम भाव में उच्च राशि में शनि और पंचम विद्या भाव में राहु बैठे हुए हैं, छठे भाव में मंगल, एकादश लाभ भाव में केतु और द्वादश भाव में चंद्र और शुक्र बैठे हैं दोनों जन्म कुंडलियों में बड़े बड़े योगों की भरमार हैं.
इसी के साथ बात करें प्रभु श्री राम की जन्म कुंडली में श्रेष्ठतम गजकेसरी योग, हंस योग, शशक योग, महाबली योग, रूचक योग, मालव्य योग, कुलदीपक योग, कीर्ति योग सहित अनेकों वहां योगों की भरमार हैं और श्री राम की कुंडली में बने योग पर ध्यान दिया जाए तो चंद्रमा और बृहस्पति का एक साथ होना ही जातक धर्म और वीर वेदांत में रूचि लेने वाला होता हैं और वही बृहस्पति की पंचम विद्या भाव पर अमृत दृष्टि, सप्तम पत्नी भाव पर मार्ग दृष्टि और नवम भाग्य भाव पर अमृत दृष्टि पढ़ रही हैं जिसके फलस्वरूप भगवान राम की कीर्ति और भाग्योदय का शुभारंभ 16वें वर्ष में ही हो गया था और पूर्ण भाग्योदय 25 वर्ष से शुरुआत हुई थी.