नेशनल डेस्क : क्या बीजेपी के दिग्गज नेताओं खासकर गैर मोदी खेमे के नेताओं में कोई बेचैनी है? कोई डर है? या फिर उन्होंने कोई खास चक्रव्यूह मोदी-शाह के लिए रच रखा है? ये ढेरों सवाल उस एक तहरीर के इर्द गिर्द लिपट कर आए हैं जो बीते कल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मध्य प्रदेश में दी। उन्होंने घोषणा की है कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनकी इस घोषणा पर सर्फ एक आदमी खुश नजर आया वो थे स्वराज कौशल यानी उनके पति। स्वराज ने सुषमा के ऐलान के तुरंत बाद उनको टैग करके लिखा...मिल्खा सिंह ने भी दौडऩा बंद कर दिया था आप तो 40 साल से चुनाव लड़ रही हैं। यह निश्चित तौर पर एक ऐसे पति की भावना थी जो अपनी वैदेही के स्वास्थ्य और सकुशलता को लेकर सदैव चिंतित रहा है। लेकिन इसके विपरीत सुषमा की इस घोषणा ने बीजेपी के बाहर-भीतर चिंताओं और चिंतन की शुरुआत कर दी है। चर्चा जो फिलवक्त चरम पर है वो यह कि क्या कारण है कि इंदिरा गांधी के बाद देश की सबसे सशक्त महिला नेत्री इस तरह अपनी सेवानिवृति (चुनाव न लडऩे का फिलवक्त यही मतलब लगाया जा रहा है ) की घोषणा कर रही हैं।
ज्यादा किन्तु-परन्तु इसलिए भी है कि सुषमा स्वराज की उम्र महज 66 साल है जबकि बीजेपी का फार्मूला खुद 70 का है। ऐसे में यह घोषणा क्यों? कई जानकार मित्रों से चर्चा हुई। कुछ ने उनके स्वास्थ्य का हवाला दिया लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि जेटली के स्वास्थ्य जैसे हालात भी तो नहीं थे कि भाषण तक के बीच में बैठना पड़े। लम्बी छुट्टी पर जाना पड़े। यानी स्वास्थ्य कारणों वाली बात शायद ही देश पचा पाए। तो फिर क्यों आखिर क्यों सुषमा ने चुनाव नहीं लडऩे की बात कही? नेताओं के वरिष्ठता क्रम की बात करें तो हमारा मत है कि वे पीएम के बाद सबसे प्रभावशाली नेताओं में एक हैं। राजनाथ सिंह और फिर सुषमास्वराज। अरुण जेटली भी कायदे से उनके बाद गिने जाने चाहिएं। क्योंकि सुषमा स्वराज को लेकर कभी विपक्ष ने(यहां तक की स्वपक्ष ने भी ) हारे -नकारे जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जैसा कि जेटली के लिए अमृतसर से दिल्ली तक यह जुमला आम है। ऐसे में प्रश्न कई हैं। हो सकता है कि कुछ दिन में स्वंय ही सुषमा स्वराज स्थिति स्पष्ट कर दें, लेकिन फिर भी चर्चा तो चल ही गई है।
बीजेपी में किनारे की सियासत
सुषमा के ताजा ब्यान ने बीजेपी के भीतर किनारे किये जाने या किनाराकशी की सियासत को फिर से सतह पर लाकर रख दिया है। यह महज कपोल कल्पना भी हो सकती है लेकिन चर्चा में है तो फिर इसका जिक्र होगा ही। नरेंद्र मोदी ने आते ही जिस तरह से आडवाणी, जोशी, सिन्हा समेत आधा दर्जन बड़े नेताओं को किनारे लगाया वह किसी से छिपा नहीं है। बड़े बड़े नामों की ही बात करें तो उसके बाद वैंकेया नायडू उपराष्ट्रपति बनकर अलग हो गए या कर दिए गए। राज्यों में भी बड़े बड़े स्थापित छांट दिए गए और शेष छांटे जा रहे हैं एक एक करके। तो क्या सुषमा स्वराज ने ऐसी किसी छंटाई को भांप कर समय रहते सुरक्षित कदम उठा लिया हो ? जिस तरह से जेटली ने सुषमा स्वराज के मुकाबले मौजूदा सरकार में निर्मला सीतारमण को एलिवेट कराया उससे भी उनके आहत होने की चर्चा चली थी। सूत्रों के मुताबिक रक्षा मंत्री जैसे ओहदे के लिए सुषमा स्वराज का नाम सबसे ऊपर था जिसे बाद में स्वीकार नहीं किया गया। तो क्या ऐसी ही किसी मुहीम से आहत होकर सुषमा ने यह घोषणा की है? एक विचार यह भी है कि गैर मोदी खेमे के नेता जानबूझकर ऐसे कदम तो नहीं उठा रहे हैं जिससे बीजेपी में सब ठीक नहीं होने के संकेत जाएं।
उल्लेखनीय है कि सुषमा स्वराज से पहले शांता कुमार भी चुनाव नहीं लडऩे का राग अलाप चुके हैं। ऐसे में एक विचार यह भी है कि मोदी का खेल खराब करने के लिए यह चक्रव्यूह रचा गया है। शायद कुछ दिन में तस्वीर और साफ हो जाए। तब तक इंतजार कीजिये क्योंकि इंतजार में मजा है।