बाढ़ का पानी
फैला चारों ही ओर
डूब गए हैं
सारे ही ओर छोर।
जाने कितने
टूटकर बिखरे
घर,सपने।
और बिछुड़ गए
पलभर में
कितनों के अपने।
प्रकृति कैसे
खेल रही है खेल
कहीं है सूखा
कहीं बाढ़ का पानी
क्यों कर करे
अपनी मनमानी।
मची है कैसी
ये अज़ब तबाही
क्या होगी भरपाई?