ऋषि आक के पुत्र श्रुत ने बालपन में सोच लिया कि उसे ईश्वर से मिलना है। श्रुत ने सुन रखा था कि ईश्वर दूर कहीं रहता है, इसलिए उसने ईश्वर से मिलने के लिए यात्रा की तैयारी शुरू की। उसने गठरी में कुछ खाद्य सामग्री बांधी और पीने के लिए दूध और जल लेकर ईश्वर से मिलने के लिए चल पड़ा। उस वक्त वह मात्र पांच वर्ष का था। अभी वह अपने घर से निकलकर जंगल की राह पर पहुंचा ही था कि उसे एक वृद्धा दिखी, जो एक पत्थर पर बैठकर कबूतरों को निहार रही थी।
श्रुत उस महिला के पास गया और उसके साथ ही उस पत्थर पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसे भूख लगी तो उसने अपनी गठरी खोली और उसमें रखे कुछ व्यंजन खाकर दूध पीने लगा। महिला श्रुत को ध्यान से देख रही थी। श्रुत को लगा कि शायद महिला भी भूखी है इसलिए उसने अपने कुछ व्यंजन उस बूढ़ी महिला की तरफ बढ़ा दिए। वृद्धा के चेहरे पर खूबसूरत मुस्कान फैल गई। बच्चे को लगा कि मानो उसने इस दुनिया की सबसे हसीन मुस्कान देखी हो। वह इसे फिर देखना चाहता था। उसने फिर से एक व्यंजन निकालकर आगे बढ़ा दिया। यह सिलसिला दोपहर तक चला।
दोपहर में श्रुत थक गया और उठकर वापस घर की ओर चल दिया। घर पहुंचकर उसने दरवाजा खटखटाया। मां ने दरवाजा खोलकर उसे आश्चर्य से देखा और उसकी प्रसन्नता की वजह पूछी। श्रुत ने कहा कि आज वह ईश्वर से मिलकर आया है और उसकी मुस्कान दुनिया में सबसे खूबसूरत है। श्रुत के चेहरे पर आई अभूतपूर्व शांति से मां आश्चर्यचकित थी। दूसरी ओर वृद्धा भी अपने घर देर से पहुंची तो बेटे ने मां से देर की वजह पूछी। मां ने कहा, आज मेरी मुलाकात ईश्वर से हुई। वह मेरी उम्मीद से काफी कम उम्र का था।